आरक्षण और ऑफर!
अगर आरक्षण का यही हाल रहा तो हो सकता है कि एक दिन ऐसा आएगा जब मोबाइल कंपनियां ऐसे ऑफर देंगी।
Genral - ₹249 में 1 GB (2G)
OBC - ₹149 में 1.5 GB (3G)
S.C - ₹99 में 4 GB (3G)
S.T - ₹50 में 3G अनलिमिटेड
भला हो रेलवे रिजर्वेशन पर इन आरक्षण मांगने वालो की नज़र नहीं पड़ी नहीं तो सीट भी इस प्रकार होती
S.C - अपर बर्थ
S.T - मिडिल बर्थ
O.B.C.- लोअर बर्थ
Genral - अपनी दरी साथ लेकर जाएँ।
कुछ दिनों में विवाह हेतु भी स्कीम चलेगी
S.C - 3 पत्नी
S.T -2 पत्नी
OBC - 1 पत्नी
Genral - एक भी नहीं क्योंकि नौकरी नहीं तो छोकरी नही
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कुछ यूँ ही!
मैं शांति से बैठा अपना इंटरनेट चला रहा था। तभी कुछ मच्छरों ने आकर मेरा खून चूसना शुरू कर दिया। स्वाभाविक प्रतिक्रिया में मेरा हाथ उठा और चटाक हो गया और दो-एक मच्छर ढेर हो गए। फिर क्या था उन्होंने शोर मचाना शुरू कर दिया कि मैं असहिष्णु हो गया हूँ।
मैंने पूछा, "इसमें असहिष्णुता की क्या बात है?"
वो कहने लगे, "खून चूसना उनकी आज़ादी है।"
बस "आज़ादी" शब्द सुनते ही कई बुद्धिजीवी उनके पक्ष में उतर आये और बहस करने लगे। इसके बाद नारेबाजी शुरू हो गयी।
"कितने मच्छर मारोगे हर घर से मच्छर निकलेगा"
बुद्धिजीवियों ने अख़बार में तपते तर्कों के साथ बड़े-बड़े लेख लिखना शुरू कर दिया।
उनका कहना था कि मच्छर देह पर मौज़ूद तो थे लेकिन खून चूस रहे थे ये कहाँ सिद्ध हुआ है और अगर चूस भी रहे थे तो भी ये गलत तो हो सकता है लेकिन 'देहद्रोह' की श्रेणी में नहीं आता। क्योंकि ये "मच्छर" बहुत ही प्रगतिशील रहे हैं। किसी की भी देह पर बैठ जाना इनका 'सरोकार' रहा है।
मैंने कहा, "मैं अपना खून नहीं चूसने दूंगा बस।"
तो कहने लगे, "ये "एक्सट्रीम देहप्रेम" है। तुम कट्टरपंथी हो, डिबेट से भाग रहे हो।"
मैंने कहा, "तुम्हारा उदारवाद तुम्हें, मेरा खून चूसने की इज़ाज़त नहीं दे सकता।"
इस पर उनका तर्क़ था कि भले ही यह गलत हो लेकिन फिर भी थोड़ा खून चूसने से तुम्हारी मौत तो नहीं हो जाती, लेकिन तुमने मासूम मच्छरों की ज़िन्दगी छीन ली। "फेयर ट्रायल" का मौका भी नहीं दिया।
इतने में ही कुछ राजनेता भी आ गए और वो उन मच्छरों को अपने बगीचे की 'बहार' का बेटा बताने लगे।
हालात से हैरान और परेशान होकर मैंने कहा कि लेकिन ऐसे ही मच्छरों को खून चूसने देने से मलेरिया हो जाता है, और तुरंत न सही बाद में बीमार और कमज़ोर होकर मौत हो जाती है।
इस पर वो कहने लगे कि तुम्हारे पास तर्क़ नहीं हैं इसलिए तुम भविष्य की कल्पनाओं के आधार पर अपने 'फासीवादी' फैसले को ठीक ठहरा
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जाट का खूंटा!
एक जाट ने सार्वजनिक स्थान पर भैंस बांधने के लिए खूटा गाड़ रखा था। अन्य चौधरियो ने खूटा उखाड़ने का अनुरोध किया किन्तु जाट ने बात नहीं मानी। अंत में पंचायत बुलायी गयी।
पंचों ने जाट से कहा, "तूने खूटा गलत जगह गाड़ रखा है।"
जाट: मानता हूँ भाई।
पंच: खूटा यहाँ नहीं गाड़ना चाहिए था।
जाट: माना भाई।
पंच: खूंटे से टकरा कर बच्चों को चोट लग सकती है।
जाट: मानता हूं।
पंच: भैंस सार्वजनिक स्थान पर गोबर करती है, गंदगी फैलती है।
जाट: मानता हूं।
पंच: भैंस बच्चों को सींग पूँछ भी मार देती है।
जाट: मानता हूं, मैंने तुम्हारी सभी बातें मानी। अब पंच लोगो मेरी एक ही बात मान लो।
पंच: बताओ अपनी बात।
जाट: खूंटा तो यहीं गडेगा।
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अहमियत बीवी की!
सुबह उठ कर पत्नी को पुकारते हैं, सुनो चाय लाओ।
थोड़ी देर बाद फिर आवाज़, सुनो नाश्ता बनाओ।
क्या बात है, आज अभी तक अखबार नहीं आया।
जरा देखो तो, किसी ने दरवाजा खटखटाया।
अरे आज बाथरूम में साबुन नहीं है क्या?
देखो तो कितना गीला पड़ा है तौलिया।
अरे,ये शर्ट का बटन टूटा है, जरा लगा दो और मेरे मौजे कहाँ है, जरा ढूंढ के ला दो।
लंच के डिब्बे में आलू के परांठे दो ज्यादा रख देना।
देखो अलमारी पर कितनी धूल जमी पड़ी है, लगता है कई दिनों से डस्टिंग नही की है।
गमले में पौधे सूख रहे हैं, क्या पानी नहीं डालती हो? दिन भर करती ही क्या हो बस गप्पे मारती हो।
शाम को डोसा खाने का मूड है, बना देना।
बच्चों की परीक्षाएं आ रही हैं पढ़ा देना।
सुबह से शाम तक कर फरमाईशें कर नचाते हैं, चैन से सोने भी नहीं देते, सताते हैं।
दिनभर में बीवियां कितना काम करती हैं ये तब मालूम पड़ता है जब वो बीमार पड़ती हैं। एक दिन में घर अस्त व्यस्त हो जाता है, रोज का सारा रूटीन ही ध्वस्त हो जाता है। आटे दाल का सब भाव पता चल जाता है। बीवी की अहमियत क्या है, ये पता चल जाता है।
सभी बीवियों को सलाम।
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Genral - एक भी नहीं क्योंकि नौकरी नहीं तो छोकरी नही
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कुछ यूँ ही!
मैं शांति से बैठा अपना इंटरनेट चला रहा था। तभी कुछ मच्छरों ने आकर मेरा खून चूसना शुरू कर दिया। स्वाभाविक प्रतिक्रिया में मेरा हाथ उठा और चटाक हो गया और दो-एक मच्छर ढेर हो गए। फिर क्या था उन्होंने शोर मचाना शुरू कर दिया कि मैं असहिष्णु हो गया हूँ।
मैंने पूछा, "इसमें असहिष्णुता की क्या बात है?"
वो कहने लगे, "खून चूसना उनकी आज़ादी है।"
बस "आज़ादी" शब्द सुनते ही कई बुद्धिजीवी उनके पक्ष में उतर आये और बहस करने लगे। इसके बाद नारेबाजी शुरू हो गयी।
"कितने मच्छर मारोगे हर घर से मच्छर निकलेगा"
बुद्धिजीवियों ने अख़बार में तपते तर्कों के साथ बड़े-बड़े लेख लिखना शुरू कर दिया।
उनका कहना था कि मच्छर देह पर मौज़ूद तो थे लेकिन खून चूस रहे थे ये कहाँ सिद्ध हुआ है और अगर चूस भी रहे थे तो भी ये गलत तो हो सकता है लेकिन 'देहद्रोह' की श्रेणी में नहीं आता। क्योंकि ये "मच्छर" बहुत ही प्रगतिशील रहे हैं। किसी की भी देह पर बैठ जाना इनका 'सरोकार' रहा है।
मैंने कहा, "मैं अपना खून नहीं चूसने दूंगा बस।"
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मैंने कहा, "तुम्हारा उदारवाद तुम्हें, मेरा खून चूसने की इज़ाज़त नहीं दे सकता।"
इस पर उनका तर्क़ था कि भले ही यह गलत हो लेकिन फिर भी थोड़ा खून चूसने से तुम्हारी मौत तो नहीं हो जाती, लेकिन तुमने मासूम मच्छरों की ज़िन्दगी छीन ली। "फेयर ट्रायल" का मौका भी नहीं दिया।
इतने में ही कुछ राजनेता भी आ गए और वो उन मच्छरों को अपने बगीचे की 'बहार' का बेटा बताने लगे।
हालात से हैरान और परेशान होकर मैंने कहा कि लेकिन ऐसे ही मच्छरों को खून चूसने देने से मलेरिया हो जाता है, और तुरंत न सही बाद में बीमार और कमज़ोर होकर मौत हो जाती है।
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जाट का खूंटा!
एक जाट ने सार्वजनिक स्थान पर भैंस बांधने के लिए खूटा गाड़ रखा था। अन्य चौधरियो ने खूटा उखाड़ने का अनुरोध किया किन्तु जाट ने बात नहीं मानी। अंत में पंचायत बुलायी गयी।
पंचों ने जाट से कहा, "तूने खूटा गलत जगह गाड़ रखा है।"
जाट: मानता हूँ भाई।
पंच: खूटा यहाँ नहीं गाड़ना चाहिए था।
जाट: माना भाई।
पंच: खूंटे से टकरा कर बच्चों को चोट लग सकती है।
जाट: मानता हूं।
पंच: भैंस सार्वजनिक स्थान पर गोबर करती है, गंदगी फैलती है।
जाट: मानता हूं।
पंच: भैंस बच्चों को सींग पूँछ भी मार देती है।
जाट: मानता हूं, मैंने तुम्हारी सभी बातें मानी। अब पंच लोगो मेरी एक ही बात मान लो।
पंच: बताओ अपनी बात।
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अहमियत बीवी की!
सुबह उठ कर पत्नी को पुकारते हैं, सुनो चाय लाओ।
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क्या बात है, आज अभी तक अखबार नहीं आया।
जरा देखो तो, किसी ने दरवाजा खटखटाया।
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लंच के डिब्बे में आलू के परांठे दो ज्यादा रख देना।
देखो अलमारी पर कितनी धूल जमी पड़ी है, लगता है कई दिनों से डस्टिंग नही की है।
गमले में पौधे सूख रहे हैं, क्या पानी नहीं डालती हो? दिन भर करती ही क्या हो बस गप्पे मारती हो।
शाम को डोसा खाने का मूड है, बना देना।
बच्चों की परीक्षाएं आ रही हैं पढ़ा देना।
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दिनभर में बीवियां कितना काम करती हैं ये तब मालूम पड़ता है जब वो बीमार पड़ती हैं। एक दिन में घर अस्त व्यस्त हो जाता है, रोज का सारा रूटीन ही ध्वस्त हो जाता है। आटे दाल का सब भाव पता चल जाता है। बीवी की अहमियत क्या है, ये पता चल जाता है।
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